भारत ऐसा देश है जहाँ की अस्सी फीसदी जनता हिन्दू है परन्तु
दुर्भाग्य की वामपंथियों के चाल ने सर्वदा हिन्दुओं को हेय नज़रिए से देखने का
दृष्टिकोण प्रदान किया| यह देश अनेक आस्थाओं को मानने वाले लोगो का पवित्र संगम है
जहाँ भाँती-भाँती के लोग अपने अलग तरीके से परमात्मा के समक्ष झुकते दिखते है|
इसीलिए इसे धर्मनिरपेक्ष राष्ट्र की संज्ञा दी जाती है| भारत इसलिए धर्मनिरपेक्ष
नहीं है की यहाँ का संविधान ऐसा प्रावधान अपने अन्दर रखता है बल्कि इसलिए है
क्योकि यहाँ के लोगों में सर्व धर्म समभाव की संस्कृति रची-बसी है| दुर्भाग्य यह
रहा की कालांतर में विदेशी विधर्मी आक्रमणकारियों ने अपने बल, छद्म और अपराधों से
यहाँ के विशवास को थोडा उसे खंडित किया जिसका परिणाम आज अलग अलग रूपों में
परिलक्षित होता है|
मध्य कालीन भारत में अनेको मंदिरों को लुटा और थोड़ा गया| जिसका
दो महत्वपूर्ण कारण था- पहला, की तब मंदिरों में स्वर्ण आभूषण और मुद्राएँ अपार
मात्रा में सरक्षित करके रखी जाती थी (जिसका एक वर्त्तमान उदाहरण है केरल का स्वामी
पद्मनाभ मंदिर) और दूसरा की, विदेशी विक्रान्ता ऐसा करके बहुसंखाय्क समाज के
भावनाओं को धार्मिक आधार पर ठेस पहुचाना चाहते थे ताकि यह देश सम्प्रदाय के आधार
पर बाँट दिया जाय और इसका राजनैतिक और आर्थिक लाभ उन्हें मिलता रहें| इन थोड़े गए मंदिरों
की संख्या हाजारों में है| आजादी के बाद भी कांग्रेसी और वामपंथी विचार के लोग यह
नहीं चाहते थे की यहाँ सर्व धर्म संभव रहे अतः उन लोगों नें हिन्दुओ को जाती और
समाज को मजहब के आधार पर बांटना शुरू किया| कश्मीर में कम से कम २५० मंदिरें थोड़ी
गई पर उसका संज्ञान कही और कभी नहीं लिया गया|
राम जन्म भूमि विवाद
भी उस्सी का विस्तार है| विधर्मी आक्रमणकारी बाबर ने अपने सेनापती के माध्यम से
हिन्दू आस्था का प्रतिक अयोध्या में बसे श्री राम लला के भव्य मंदिर को तोड़ दिया
और उसी के ऊपर एक ढांचे को खडा किया औरे तब से अब तक वहाँ पुनः एक मंदिर स्थापना
की मांग होती रही है| अकबर के समय से उसमें नमाज भी कभ्ही अदा नहीं की गयी क्योकि
हिन्दुओं के विरोध के कारण अकबर ने ऐसा करने से मना कर दिया था परन्तु मंदिर निर्माण
के मांग को भी नहीं माना| आज़ाद भारत में साधू संतो और हिन्दू समाज द्वारा इसके
पुनः स्थापना की मांग तेज़ होती गई| अस्सी के दशक में एक राजनैतिक पार्टी ‘भारतीय जनता पार्टी’ का गठन
हुआ जिसने अपने संकल्प पत्र में इस मांग को आतंरिक अजेंडे के रूप में रखा, जिसका व्यापक
समर्थन पुरे देश में मिला| आन्दोलनों का वो दौर ही था जब विवश होकर अपने राजनैतिक
लाभ के लिए कांग्रेस ने १९८६ में बाबरी मस्जिद का ताला कोर्ट के आदेश पर खोलवा
दिया परन्तु आगे जाने के लिए कांग्रेस तैयार नहीं थी और तत्कालीन प्रधानमंत्री
श्री राजिव गांधी हार के भय से दो महत्वपूर्ण परन्तु अपरिपक्व निर्णय लिए| पहला, ‘शाह
बानो’ मामले में माननीय उच्चतम न्यायालय द्वारा दिए गए आदेश को सही मानते हुए उससे
सम्बन्धित लोक सभा में बिल पेश कर दिया परन्तु कुछ कट्टर पंथियों के विरोध के कारणवश
सदन में प्रस्तुत बिल को वापस लेना पडा| दूसरा, यह अपरिपक्व निर्णय देखकर हिन्दू
संगठनों ने भी अपनी मांगें तेज़ कर दी जिसका परिणाम बाबरी विवादित ढाँचे के ताले के
खोलने के रूप मिला| कांग्रेस की सरकारे इस
मुद्दे पर सरकार के गठन के बाद आगे बढ़ने को तैयार नहीं थी अतः भाजपा जैसी राजनीतिक
पार्टी ने इस ढाँचे को हटाने और भव्य मंदिर बनाने के लिए अपना संकल्प पत्र रखा| ६
दिसम्बर,१९९२ को वो विवादित ढांचा कार सेवकों द्वारा गिरा दिया गया| उसी समय उत्तर
प्रदेश के तत्कालीन मुख्यमंत्री ‘मुलायम सिंह यादव’ ने निर्दोष कार सेवको पर
गोलियां चलवाई परिणाम स्वरूप अनेक लोग मारे गए और आज वे सार्वजनिक रूप से इस गुनाह
को स्वीकार भी करते हैं|
अब यह मामला सिर्फ
आस्था का विषय नहीं रहा बल्कि अदालती मुद्दा भी बन चुका है| इलाहाबाद उच्च
न्यायालय के तिन सदसीय बेंच ने अपने २०१० के निर्णय में यह साफ़ कर दिया था की वह
विवादित जमीन जहाँ राम लाला विराजमान हैं वो हिन्दुओं को दी जायेगी| इसके कोर्ट में सिद्ध करने लिए पुरातत्व विभाग
द्वारा अनेक खुदाई की गई और उससे जो वस्तुये प्राप्त हुयी उससे सिद्ध होता है की वहाँ
कोई मस्जिद नहीं बल्कि मंदिर ही था जिसे बाबर के द्वारा तोड़कर उसपर मस्जिद का
निर्माण किया गया| ॐ, स्वास्तिक, वराह, आदि देवी देवताओं वाले ८४ खम्भे खुदाई से
मिलें| पुरातात्विक टीम के सदस्य श्री के
के मोहम्मद की ही माने तो खुदाई से निकले सभी अवशेष यह दर्शाते है की वहां पुराने
समय में मंदिर हीं था| हाल फिलहाल, उच्चतम न्यायालय के दो फैसलों ने इसे ज्वलंत
बना दिया है| एक, यह की यह आस्था का विषय है इसलिए इसका समाधान कोर्ट के बाहर आम
सहमति से हो तो ज्यादा बेहतर होगा जिसमे स्वयं मुख्य न्यायाधीश अपनी भूमिका निभाने
का वादा किये जिसे मंदिर वाले पक्ष ने दिल खोलकर स्वागत किया परन्तु दुसरे पक्ष का
रुख स्पष्ट नहीं हो सका और दूसरा भाजपा के
वरिष्ठ नेताओं को इस मामले में अभियुक्त बनाया जाना| समझ नहीं आता मुलायम ने खुलेआम
अपनी गुनाह कबुली लेकिन सरकार और अदालते कोई संज्ञान नहीं ले रही है कश्मीर में लगभग २५० मंदिर टूटे परन्तु कोई संज्ञान नहीं लिया गया परन्तु बहुसंख्यकों के आस्था का प्रतिक राम
मंदिर से जुड़े लोगो पर संज्ञान लिया जा रहा है और निर्माण की प्रक्रिया भी अवरुद्ध
की जा रही है|
यदि समय रहते मंदिर नहीं बना तो यह हिन्दू भावना के साथ मजाक
होगा| हिन्दू समाज मकका नहीं मांग रहा है ना ही वेटिकन सिटी मांग रहा है बल्कि वह
अपने भगवान पुरुषोत्तम श्री राम के जन्म भूमि पर भव्य मंदिर का निर्माण चाहता है
इसलिए दुसरे पक्ष को भी यह बात समझनी चाहिये और स्वयं पहल करनी चाहिए जो एक सामजिक
सौहार्द्र का उदाहरण पेश करेगा| और यदि ऐसा नहीं होता है तो केंद्र की सरकार अपने
पूर्ववर्ती सरकारों से कुछ सीखें और इससे सम्बंधित एक बिल संसद से पास कराये और
मंदिर बनाने का रास्ता प्रसस्त करें| सुप्रीम कोर्ट का फैसला बदलने का अधिकार
सिर्फ संसद को हीं है जैसा की शाहबानो मामले में किया गया था| एक अन्य उदाहरण देश के
प्रथम राष्ट्रपति ने सोमनाथ मंदिर को
बनवाकर और उसमें पूजन कर दिया था| राज्य और केंद्र में अनुकूल सरकारे है और यदि
आस्था से जुडा मामला यदि अब नहीं सुलझा तो कभी नहीं सुलझेगा और राजनीति पर भी अपना
प्रभाव छोड़ेगा|
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